गुरुवार, 14 जुलाई 2011

माँ..... सौरभ दुबे

 शब्द इंड़ो-यूरोपीय भाषा परिवार के सबसे पुराने शब्दों में एक है। इस शब्द की छाप आज भी इस कुनबे की ज्यादातर भाषाओं पर देखी जा सकती है। इसी वजह से संस्कृत का मातृ , जेंद अवेस्ता में मातर, फारसी-उर्दू में मादर, ग्रीक में meter , लैटिन mater यूनानी में जर्मन में muotar स्लाव में mati, डच में moeder और अंग्रेजी में मदर जैसे संबोधनसूचक शब्द देखने को मिलते हैं। विद्वान इस शब्द की उत्पत्ति अलग अलग ढंग से बताते हैं। संस्कृत में इसके जन्म के पीछे निर्माणसूचक ‘मा’ धातु मानी जाती है यानि जो निर्माण करे वह माँ। कुछ इसे मान् धातु से निकला शब्द मानते हैं अर्थात् जिसका मान-सम्मान व पूजा की जाए वह माता। मगर कई भाषाविज्ञानी उत्पत्तियों के इन आधारों को कपोलकल्पना मानते हैं और इसे ‘म’ वर्ण से निकला हुआ नर्सरी शब्द मानते हैं जो ध्वनि-अनुकरण प्रभाव के चलते एक ही आधार से उठकर भारतीय –यूरोपीय भाषा परिवार में फैलता चला गया। गौर करें कि शिशु जिन मूल ध्वनियों को अनायास निकालता है उनमें सर्वाधिक ‘म वर्ण वाली ही होती हैं यथा अम् मम् , हुम्म् आदि,हिन्दी सहित कई भारतीय भाषाओं में मां के लिए अम्मा सहित इससे मिलते जुलते शब्द चलते है जैसे मराठी में आई, माई, माय, कन्नड़ में अम्ब जैसे शब्द दरअसल संस्कृत के अम्बा से निकले हैं जिसका अर्थ माँ है। भाषा ज्ञानियों के मुताबिक मुस्लिम समाज में बोला जाने वाला अम्मी शब्द भी इससे ही निकला है और अंग्रेजी के मॉम या मम्मी के पीछे भी यही आधार है। अम्बा शब्द का मूलआधार संस्कृत धातु अम्ब् है
   माँ, ये एक ऐसा शब्द है जिसकी महत्ता ना तो कभी कोई आंक सका है और ना ही कभी कोई आंक सकता है। इस शब्द मे जितना प्यार है उतना प्यार शायद ही किसी और शब्द मे होगा। माँ तो  अपने बच्चों को प्यार और दुलार से बड़ा करती है। अपनी परवाह ना करते हुए बच्चों की खुशियों के लिए हमेशा प्रयत्न और प्रार्थना करती है और जिसके लिए अपने बच्चों की ख़ुशी से बढकर दुनिया मे और कोई चीज नही है।कई बार ऐसा होता है की माँ को सब पता होता है जो हम बताते हैं वो भी और जो नहीं बताते वो भी। जैसे भगवान से कुछ नहीं छुपता वैसे ही माँ से कुछ नहीं छुपता। मैंने और शायद आपने भी इस सच्‍चाई को कई बार महसूस कि‍या होगा। हमारे सुख दुख की जि‍तनी साक्षी हमारी माँ होती है उतना शायद ही कोई ओर हो, भले ही फि‍र माँ सामने हो या ना हो। माँ सि‍र्फ एक रिश्‍ता नहीं होता वो एक संस्‍कार है, एक भावना है, एक संवेदना है। संस्‍कार इसलि‍ए क्‍योंकि‍ वो आपके लि‍ए सि‍र्फ और सि‍र्फ अच्‍छा सोचती है, भावना इसलि‍ए क्‍योंकि‍ वो आपके साथ दि‍ल से जुड़ी होती है और संवेदना इसलि‍ए क्‍योंकि‍ वो आपको हमेशा प्रेम ही देती है। माँ जिंदगी भर सि‍र्फ हमारे लि‍ए जीती है। हम कि‍तनी ही बार उससे उलझ लेते हैं। लेकि‍न वो हमेशा हमें उलझनों से नि‍कालती रहती है। जरा सोच कर देखिए कि हम हर उम्र में उसे अपनी तरह से तंग कि‍या करते हैं।बचपन में हमारा रातों को जागना और दि‍न में सोना, माँ हमारे लि‍ए कई रातों तक सो नहीं पाती, दि‍न में उसे घर की जि‍म्‍मेदारी सोने नहीं देती। तब हम अपने बचपने में उसे समझ नहीं पाते। जैसे जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी पढ़ाई लि‍खाई की जि‍म्‍मेदारी भी उसकी ही है और साथ ही अच्‍छे संस्‍कारों की भी जि‍म्‍मेदारी भी उसकी ही होती है। बड़े होते ही हमारी अपनी सोच बनती है, हमें एक वैचारिक दृष्टि‍ मि‍लती है। अब मै माँ के बारे में  क्या बताऊ वैसे भी जितना मै जानता था उतना बता दीया और अंत में संतान की खुशी और उसका सुख ही माँ के लि‍ए उसका संसार होता है।                                                              

3 टिप्पणियाँ:

Bharat Swabhiman Dal ने कहा…

संस्कृत भाषा विश्व की वैज्ञानिक भाषा है , विश्व की अधिकांश भाषाएँ इसी से जन्मी है । इसी भाषा में जन्मदात्री माँ और मातृभूमि को स्वर्ग से बढकर बताया है । सच में मातृभाषा , मातृभूमि और माँ से बढकर कोई दूसरा नहीं हो सकता ।
अपने संस्कारों का बोध कराती सुन्दर अभिव्यक्ति ...... आभार ।
www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com

rubi sinha ने कहा…

अपने संस्कारों का बोध कराती सुन्दर अभिव्यक्ति ...... आभार ।

shashi ने कहा…

bahut bahut achchhi rachna ....

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