बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

मन के हारे हार हे,मन के जिते जीत


                                                  वैसे तो यह दोहा कविर दास ने लिखा था ,कि
                  “मन के हारे हार हे मन के जिते जीत ,कहे कविर गुरु पाईये मन हि के परपित"
मै यह कहना चाहता हू कि आज कि युवा पिढी जीवन मे कुछ भी खोना नही चाहती,वो बस पाना चाहता है,अगर वो कुछ खोता है तो वो उसे दुबारा पाने कि कोशीस नही करति,ओर वो दुसरे रास्तो पर भटक जाते है,
मै अपने बारे मे बताता हू मै डियु के एक कालेज मे पढता हू ,कुछ दिनो पहले यही मेरि भी सोच थी,ओर मै भी यही सोच रहा था कि मेरा कैरियर बरबाद हो गया ओर मै कमरे मे अपने आपको रखने लगा,बात कुछ एसी थी कि ,एक बार मै फेल हो गया था ओर दुसरे साल जब मैने दुबारा एडमिशन करवाया तो उसके कुछ महिने बाद हि मेरा  एक्सीडेंट हो गया,एक बार फिर मेरा पढाई खराब हो गई,मैने सोचा कि मेरा जीवन बरबाद हो गया,उन दो सालो कि तुलना मैने अपने पूरे जीवन से कर दीया,इससे पहले मैने अपने जीवन मे कुछ खोया नही था, अब मेरे अन्दर हीन भावना आने लगी ओर मै खुद को बहूत कमजोर सोचने लगा,ओर अपनी तुलना दुसरे से करने लगा,उस समय मै यह सोच रहा था कि कब मै काबिल इन्सान बनुंगा ओर सफलता कब पाउंगा धिरे-धिरे मै अब अपने दुखो को भूलकर अपनी लाईफ मे वापस आ गया हू,उस समय मै किसी भी काम करने कि क्षमता मेरे अन्दर नही थी,पहले मै किसी भी काम को चाहे कर पाऊ या न कर पाऊ मै बोलता था कि मै इसे कर लूंगा,लेकिन अब मेरे अन्दर यह क्षमता आ गई हैं,अब मै बोल सकता हू कि मै यह काम कर लूंगा,अब मै कर रहा हू पूरे जोश के साथ,मैने यह प्रेरणा कुछ महान हस्तियों  के जीवन से पाया,मै आपको इन महान हस्तियों  के बारे मे बताता  हू,
अब्राहम लिंकन -------------
       इनका जन्म १२ फरवरि १८०९ मे हूआ था,ये १८१६ सन मे इनडियना चले गये ओर अपना जवानी वही गूजारी,जब ये ९ साल के थे तो तभी इनके माँ का देहान्त हो गया था,यह अपनी सौतेली माँ के यह बहूत खुश थे जो इनको पढाति थी,ये बहूत गरीब थे,एक बार आपने अपने मिञ से किताब मांगा था,ओर वो किताब ओस मे भिग गया तो उनके मिञ ने उनसे उस किताब कि दाम मांगा,उनके पास पैसे नही थे देने के लिये तब उन्होंने उसके खेत मे काम करके उस किताब का दाम अदा किया,वह किताबो से प्यार करते थे,लेकिन उसके पास पढने के लिये किताब नही था,उनकि माँ उनको कोयले कि राख से पढाति थी,आपने २१ साल कि उमर मे बिजनेस ओर २२ साल मे चुनाव हार गये,आपने अपना बिजनेस फिर सुरु किया ओर २४ साल मे एक बार फिर से  बिजनेस मे माँत खा गये,इसके एक साल बाद हि इनकि पत्नी का देहान्त हो गया ओर इनका माँनसिक संतुलन कुछ हिल गया,३४ साल मे आपने कांग्रेस के चुनाव ओर ४५ साल मे सिनेट के चुनाव मे हार देखनि पणि, 47वें साल में वह उपराष्ट्रपति बनते-बनते रह गये,५२ साल कि उमर मे अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गये,अगर ये अपनी असफलताओंये देखकर पिछे मुण जाते या ये अपनी किस्मत समझकर हार माँन लेते,अगर ये चाहते तो अपनी वकालत फिर से सुरु कर सकते थे पर आपने एसा कुछ नही किया ओर लडते रहे हार तो केवल सफर का भटकाव है, अंत नही, ऐसे हि बहूत से लोगो ने ज़िंदगी मे  सफर  तय किया है,जैसे लाल बहादुर शास्त्री इनको हि देख लिजिये ये पढने के लिये नदी पार करके स्कूल जाते थे ,इनके पास नाव से जाने के लिये पैसे नही होते थे,आपने भी काफी संघर्ष  किया ओर एक दिन ये भारत के प्रधानमंत्री बने
थामस एडिसन को कौन नही जानता आपने बिजलि का आविष्कार किया था,ये बस तीन महिने स्कूल गये थे,आपने दस हजार बलबो का आविष्कार किया सब मे इनको असफलताओं मिलि,लेकिन ये हार नही माँने ओर ये अपने पथ पर लगे रहे आखिर आपनेएक दिन सफलता पा हि लिया,उन्होंने अपने बरबाद हूये समय को बहूत किमति कहा ओर कहा हमाँरि सारि गलतिया जल के राख हो गई।
ओर बिजलि के आविष्कार के बाद आपने तिन हि हपतो के बाद हि फोनोग्राफ का आविष्कार कर दिया
इसी तरह बिथेवोन को  कहा गया था कि उनमे संगीत देने कि प्रतिभा  नही है,लेकिन उन्होंने संगीत कि कुछ उत्तम  रचना दिया
एसे ही अगर हम इतिहास को  पढते है तो हमे ये पता चलता है कि हर सफलता कि भूमीका असफलताओं से सुरु हूई है,इतनि असफलताओं के बाद भी उन्होंने अपने  लगन को नही छोडा ,ओर सफलता को पा ही लिया
हममे से कुछ लोगो अपने जीवन मे अपनी असफलताओं पर एक बार या दो बार कोशिस करते है,ओर बोलते है कि हमने पूरीकोशिस कर लिया लेकिन कुछ हासिल नही हूआ,एक बात बताना चाहता हू कि असफलताओं हमे पिछे नही,आगे बढाती है,असफलताओं हमे सीख देति है,ओर  अपनी असफलताओं से सीखते हूये आगे बढते हैं,अगर हम सब कामयाबि चाहते है तो हमे अपनी असफलताओं से सीख लेनि पडेगि,
हममे ओर उनमे फर्क सिर्फ़ इतना है कि वो अपनी असफलताओं के बाद जोश, हिम्मत के साथ उठ खड़े हूये ओर हम वो जोश ला नही पाते
                    ” नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा है कि”
                                 ”संसार मे कुछ भी असम्भव नही है”
   अगर इन्सान लक्ष्य बना ले कि मुझे वो पाना है,चाहे जितना भी तूफान आये उसे विचलित नही होना चाहिये
जैसे अर्जुन का लक्ष्य था चिड़िया कि आख मे तिर माँरना,तो उनहे केवल चिड़िया का आख दिखाई दे रहा था,उसी तरह हमे भी अपने लक्ष्य पर फोकस करना चाहिये।
                                                                                                                                          
                                                                   

2 टिप्पणियाँ:

shashi ने कहा…

aap ne bahut accha likha hai yuva pidhi ke marg darshan ke liye

हरीश सिंह ने कहा…

आदरणीय सौरभ जी , आप यहाँ पर आये वह भी एक सुन्दर रचना के साथ आपका दिल से स्वागत, आपने हमारे निमंत्रण का मान रखा इसके लिए हम आपके ऋणी है. हम एक अपना ब्लॉग परिवार बनाना चाहते हैं. हमारी मंशा पद की जिम्मेदारी देकर किसी को भी दायरे में नहीं बाँधने की नहीं है . परिवार में बड़ा वही कहा जाता है जो अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से निभाता है. इस ब्लॉग में सहयोग देने वाले बराबर की जिम्मेदारी लेंगे. परिवार में जो सदस्य बड़ा है. उसका सम्मान होता है. आप सभी लोग हमसे बड़े है, हम आप सभी का सम्मान करते हैं. जहा प्यार होता है, तकरार भी वही होता है. यदि सभी एक दूसरे की भावनाओ का सम्मान करेंगे तो हर तकरार के बाद प्यार और बढ़ता जायेगा. एक दिन हमारा परिवार बहुत बड़ा और बहुत ही मजबूत होता जायेगा. आप सभी अपने को इस परिवार का मुखिया मानकर इस परिवार को मजबूत बनाये यही मेरी कामना है. इस परिवार में कभी किसी भी पद का बंटवारा नहीं होगा. अपनी अमूल्य राय से हमें हमारी भूलो का एहसास कराते रहे. धन्यवाद.


हरीश सिंह मिथिलेश धर दूबे

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